ॐ अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया । भूमिका
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
श्री चैतन्यमनोऽभीष्टं स्थापितं येन भूतले ।
स्वयं रूपः कदा महां ददाति स्वपदान्तिकम् ॥
मैं घोर अज्ञान के अंधकार में उत्पन्न हुआ था और मेरे गुरु ने अपने ज्ञान रूपी प्रकाश से मेरी आँखें खोल दीं। मैं उन्हें सादर नमस्कार करता हूँ।
श्रील रूप गोस्वामी प्रभुपाद कब मुझे अपने चरणकमलों में शरण प्रदान करेंगे, जिन्होंने इस जगत् में भगवान् चैतन्य की इच्छा की पूर्ति के लिए प्रचार योजना (मिशन) की स्थापना की है ?
Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 1)
वन्देऽहं श्रीगुरोः श्रीयुतपदकमलं श्रीगुरून् वैष्णवांश्च ।
आश्रीरूपं साग्रजातं सहगणरघुनाथान्वितं तं सजीवम् ॥
साद्वैतं सावधूतं परिजनसहितं कृष्णचैतन्यदेवं ।
श्रीराधाकृष्णपादान् सहगणललिता श्रीविशाखान्वितांश्च ॥
मैं अपने गुरु के चरणकमलों को तथा समस्त वैष्णवों के चरणों को नमस्कार करता हूँ। मैं श्रील रूप गोस्वामी तथा उनके अग्रज सनातन गोस्वामी एवं साथ ही रघुनाथदास, रघुनाथभट्ट, गोपालभट्ट एवं श्रील जीव गोस्वामी के चरणकमलों को सादर नमस्कार करता हूँ। मैं भगवान् कृष्णचैतन्य तथा भगवान् नित्यानन्द के साथ- साथ अद्वैत आचार्य, गदाधर, श्रीवास तथा अन्य पार्षदों को सादर प्रणाम करता हूँ। मैं श्रीमती राधा रानी तथा श्रीकृष्ण को श्रीललिता तथा श्रीविशाखा सखियों सहित सादर नमस्कार करता हूँ।
हे कृष्ण करुणासिन्धो दीनबन्धो जगत्पते ।
गोपेश गोपिकाकान्त राधाकान्त नमोऽस्तु ते ॥
हे कृष्ण! आप दुखियों के सखा तथा सृष्टि के उद्गम हैं । आप गोपियों के स्वामी तथा राधारानी के प्रेमी हैं। मैं आपको सादर प्रणाम करता हूँ।
तप्तकाञ्चनगौराङ्गि राधे वृन्दावनेश्वरि ।
वृषभानुसुते देवि प्रणमामि हरिप्रिये ॥
मैं उन राधारानी को प्रणाम करता हूँ, जिनकी शारीरिक कान्ति पिघले सोने के सहश है, जो वृन्दावन की महारानी हैं। आप राजा वृषभानु की पुत्री हैं और भगवान् कृष्ण को अत्यन्त प्रिय हैं।
वाञ्छा कल्पतरुभ्यश्च कृपासिन्धुभ्य एव च ।
पतितानां पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः ॥
मैं भगवान् के समस्त वैष्णव भक्तों को सादर नमस्कार करता हूँ। वे कल्पवृक्ष के समान सबों की इच्छाएँ पूर्ण करने में समर्थ हैं तथा पतित जीवात्माओं के प्रति अत्यन्त दयालु हैं।
श्रीकृष्ण-चैतन्य प्रभु-नित्यानन्द ।
श्रीअद्वैत गदाधर श्रीवासादि गौरभक्तवृन्द ॥
मैं श्रीकृष्ण चैतन्य, प्रभु नित्यानन्द, श्रीअद्वैत, गदाधर, श्रीवास आदि समस्त भक्तों को सादर प्रणाम करता हूँ।
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ॥
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Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 1)
भगवद्गीता को गीतोपनिषद् भी कहा जाता है। यह वैदिक ज्ञान का सार है और वैदिक साहित्य का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण उपनिषद् है। निस्सन्देह भगवद्गीता पर अँग्रेजी भाषा में अनेक भाष्य प्राप्त हैं, अतएव एक अन्य भाष्य की आवश्यकता के बारे में प्रश्न किया जा सकता है। इस प्रस्तुत संस्करण का प्रयोजन इस प्रकार बताया जा सकता है : हाल ही में एक अमरीकी महिला ने मुझसे भगवद्गीता के एक अँग्रेजी अनुवाद की संस्तुति चाही। निस्सन्देह अमरीका में भगवद्गीता के अनेक अँग्रेजी संस्करण उपलब्ध हैं, लेकिन जहाँ तक मैंने देखा है, केवल अमरीका ही नहीं, अपितु भारत में भी उनमें से कोई पूर्ण रूप से प्रामाणिक संस्करण नहीं मिलेगा, क्योंकि लगभग हर एक संस्करण में भाष्यकार ने भगवद्गीता यथारूप के मर्म का स्पर्श किये बिना अपने मतों को व्यक्त किया है।
Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 1)
भगवद्गीता का मर्म भगवद्गीता में ही व्यक्त है। यह इस प्रकार है: यदि हमें किसी औषधि विशेष का सेवन करना हो तो उस पर लिखे निर्देशों का पालन करना होता है। हम मनमाने ढंग से या मित्र की सलाह से औषधि नहीं ले सकते। इसका सेवन लिखे हुए निर्देशों के अनुसार या चिकित्सक के निर्देशानुसार करना होता है। इसी प्रकार भगवद्गीता को इसके वक्ता द्वारा दिये गये निर्देशानुसार ही ग्रहण या स्वीकार करना चाहिए। भगवद्गीता के वक्ता भगवान् श्रीकृष्ण हैं। भगवद्गीता के प्रत्येक पृष्ठ पर उनका उल्लेख भगवान् के रूप में हुआ है। निस्सन्देह भगवान् शब्द कभी-कभी किसी भी अत्यन्त शक्तिशाली व्यक्ति या किसी शक्तिशाली देवता के लिए प्रयुक्त होता है और यहाँ पर भगवान् शब्द निश्चित रूप से भगवान् श्रीकृष्ण को एक महान व्यक्तित्त्व वाला बताता है।
Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 1)
किन्तु साथ ही हमें यह जानना होगा कि भगवान् श्रीकृष्ण पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान् हैं, जैसा कि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, मध्वाचार्य, निम्बार्क स्वामी, श्री चैतन्य महाप्रभु तथा भारत के वैदिक ज्ञान के अन्य विद्वान आचार्यों ने पुष्टि की है। भगवान् ने भी स्वयं भगवद्गीता में अपने को परम पुरुषोत्तम भगवान् कहा है और ब्रह्म-संहिता में तथा अन्य पुराणों में, विशेषतया श्रीमद्भागवतम् में, जो भागवतपुराण के नाम से विख्यात है, वे इसी रूप में स्वीकार किये गये हैं (कृष्णस्तु भगवान् स्वयम्) । अतएव भगवद्गीता हमें भगवान् ने जैसे बताई है, वैसे ही स्वीकार करनी चाहिए। TO BE CONTINUE….