भूमिका 11

भूमिका 11

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गीता में (८.२१) अन्यत्र कहा गया है: भूमिका 11

अव्यक्तोऽक्षर इत्युक्तस्तमाहुः परमां गतिम् ।

यं प्राप्य न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम ॥

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 11)

अव्यक्त का अर्थ है अप्रकट। हमारे समक्ष सारा भौतिक जगत तक प्रकट नहीं है। हमारी इन्द्रियाँ इतनी अपूर्ण हैं कि हम इस ब्रह्माण्ड में सारे नक्षत्रों को भी नहीं देख पाते। वैदिक साहित्य से हमें सभी लोकों के विषय में प्रचुर जानकारी प्राप्त होती है।

उस पर विश्वास करना या न करना हमारे ऊपर निर्भर करता है। वैदिक ग्रंथों में, विशेषतया श्रीमद्भागवतम् में, सभी महत्त्वपूर्ण लोकों का वर्णन है। इस भौतिक आकाश से परे आध्यात्मिक जगत है जो अव्यक्त या अप्रकट कहलाता है। व्यक्ति को भगवद्धाम की ही कामना तथा लालसा करनी चाहिए, क्योंकि जब उसको उस धाम की प्राप्ति हो जाती है, तब उसको वहाँ से फिर इस जगत में लौटना नहीं पड़ता।

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Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 11)

इसके बाद प्रश्न पूछा जा सकता है कि उस भगवद्धाम तक कैसे पहुँचा जाता है? इसकी सूचना भगवद्‌गीता के आठवें अध्याय में (८.५) इस तरह दी गई है :

अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम् ।

यः प्रयाति स मद्भावं याति नास्त्यत्र संशयः ॥

अन्त काल में जो कोई मेरा स्मरण करते हुए शरीर त्याग करता है, वह तुरन्त मेरे स्वभाव को प्राप्त होता है, इसमें रंचमात्र भी सन्देह नहीं है। जो व्यक्ति मृत्यु के समय कृष्ण का चिन्तन करता है, वह कृष्ण को प्राप्त होता है। मनुष्य को चाहिए कि वह कृष्ण के स्वरूप का स्मरण करे; और यदि इस रूप का चिन्तन करते हुए वह मर जाता है, तो वह निश्चित ही भगवद्धाम को प्राप्त होता है।

मद्भावम् शब्द परम पुरुष के परम स्वभाव का सूचक है। परम पुरुष सच्चिदानन्दविग्रह हैं- अर्थात् उनका स्वरूप शाश्वत, ज्ञान तथा आनन्द से पूर्ण है। हमारा यह शरीर सच्चिदानन्द नहीं है, यह सत् नहीं अपितु असत् है। यह शाश्वत नहीं अपितु नाशवान है, यह चित् नहीं है अर्थात् ज्ञान से पूर्ण नहीं, अपितु अज्ञान से पूर्ण है।

हमें भगवद्धाम का कोई ज्ञान नहीं है, यहाँ तक कि हमें इस भौतिक जगत तक का पूर्ण ज्ञान नहीं है, जहाँ ऐसी अनेक वस्तुएँ हैं, जो हमें ज्ञात नहीं हैं। यह शरीर निरानन्द है, आनन्द से ओतप्रोत न होकर दुःख से पूर्ण है।

इस संसार में जितने भी दुःखों का हमें अनुभव होता है, वे शरीर से उत्पन्न हैं, किन्तु जो व्यक्ति भगवान् कृष्ण का चिन्तन करते हुए इस शरीर को त्यागता है, वह तुरन्त ही सच्चिदानन्द शरीर प्राप्त करता है।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 11)

इस शरीर को त्याग कर इस भौतिक जगत में दूसरा शरीर धारण करना भी सुव्यवस्थित है। मनुष्य तभी मरता है, जब यह निश्चित हो जाता है कि अगले जीवन में उसे किस प्रकार का शरीर प्राप्त होगा। इसका निर्णय उच्च अधिकारी करते हैं, स्वयं जीव नहीं करता।

इस जीवन में अपने कर्मों के अनुसार हम उन्नति या अवनति करते हैं। यह जीवन अगले जीवन की तैयारी के लिए है। अतएव यदि हम इस जीवन में भगवद्धाम पहुँचने की तैयारी कर लेते हैं, तो निश्चित ही इस शरीर को त्यागने के बाद हम भगवान् के ही सदृश आध्यात्मिक शरीर प्राप्त करते हैं।

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Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 11)

जैसा कि पहले कहा जा चुका है, अध्यात्मवादियों के कई प्रकार हैं一 ब्रह्मवादी, परमात्मावादी तथा भक्त और जैसा कि उल्लेख हो चुका है ब्रह्मज्योति (आध्यात्मिक आकाश) में असंख्य आध्यात्मिक लोक हैं। इन लोकों की संख्या भौतिक जगत के लोकों की संख्या से कहीं अधिक बड़ी है।

यह भौतिक जगत संपूर्ण सृष्टि का केवल चतुर्थांश है (एकांशेन स्थितो जगत)। इस भौतिक खण्ड में लाखों- करोड़ों ब्रह्माण्ड हैं, जिनमें अरबों ग्रह, सूर्य, तारे तथा चन्द्रमा हैं। किन्तु यह सारी भौतिक सृष्टि सम्पूर्ण सृष्टि का एक खण्ड मात्र है। अधिकांश सृष्टि तो आध्यात्मिक आकाश में है। जो व्यक्ति परब्रह्म में विलीन होना चाहता है, वह तुरन्त ही परमेश्वर की ब्रह्मज्योति में भेज दिया जाता है और इस तरह वह आध्यात्मिक आकाश को प्राप्त होता है।

जो भक्त भगवान् के सान्निध्य का आनन्द लेना चाहता है, वह वैकुण्ठ लोकों में प्रवेश करता है, जिनकी संख्या अनगिनत है, जहाँ पर परमेश्वर अपने विभिन्न पूर्ण अंशों, चतुर्भुज नारायण के रूप में तथा प्रद्युम्न, अनिरुद्ध तथा गोविन्द जैसे विभिन्न नामों से भक्तों के साथ-साथ रहते हैं।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 11)

अतएव जीवन के अन्त में अध्यात्मवादी ब्रह्मज्योति, परमात्मा या भगवान् श्रीकृष्ण का चिन्तन करते हैं। प्रत्येक दशा में वे आध्यात्मिक आकाश में प्रविष्ट होते हैं, लेकिन केवल भक्त या परमेश्वर से सम्बन्धित रहने वाला ही वैकुण्ठलोक में या गोलोक वृन्दावन में प्रवेश करता है।

भगवान् यह भी कहते हैं कि इसमें कोई सन्देह नहीं है। इस पर दृढ़ विश्वास करना चाहिए। हमें चाहिए कि जो हमारी कल्पना से मेल नहीं खाता, उसे ठुकराये नहीं। हमारी मनोवृत्ति अर्जुन की सी होनी चाहिए: “आपने जो कुछ कहा उस पर मैं विश्वास करता हूँ।”

अतएव जब भगवान् यह कहते हैं कि मृत्यु के समय जो भी ब्रह्म, परमात्मा या भगवान् के रूप में उनका चिन्तन करता है, वह निश्चित रूप से आध्यात्मिक आकाश में प्रवेश करता है, तो इसमें कोई सन्देह नहीं है। इस पर अविश्वास करने का प्रश्न ही नहीं उठता। TO BE CONTINUE….

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