भूमिका 13

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यह किस प्रकार सम्भव है? आचार्यों ने निम्नलिखित उदाहरण दिया है। यदि कोई विवाहिता स्त्री परपुरुष में आसक्त होती है, या कोई पुरुष अपनी स्त्री को छोड़कर किसी पराई स्त्री में आसक्त होता है, तो यह आसक्ति अत्यन्त प्रबल होती है। भूमिका 13

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 13)

ऐसी आसक्ति वाला हमेशा अपने प्रेमी के विषय में निरन्तर सोचता रहता है। जो स्त्री अपने प्रेमी के विषय में सोचती रहती है वह अपने घरेलू कार्य करते समय भी उसी से मिलने के विषय में सोचती रहती है। वास्तव में वह अपने गृहकार्य को इतनी अधिक सावधानी से करती है कि उसका पति उसकी आसक्ति के विषय में सन्देह भी न कर सके। इसी प्रकार हमें परम प्रेमी श्रीकृष्ण को सदैव स्मरण करना चाहिए और साथ ही अपने भौतिक या सांसारिक कर्तव्यों को सुचारु रूप से करते रहना चाहिए।

इसके लिए प्रेम की प्रगाढ़ भावना चाहिए। यदि हममें परमेश्वर के लिए प्रगाढ़ प्रेम हो तो हम अपना कर्म करते हुए उनका स्मरण भी कर सकते हैं। लेकिन हमें उस प्रेमभाव को उत्पन्न करना होगा। उदाहरणार्थ, अर्जुन सदैव कृष्ण का चिन्तन करता था, वह कृष्ण का नित्य संगी था और साथ ही योद्धा भी। कृष्ण ने उसे युद्ध करना छोड़कर जंगल जाकर ध्यान करने की कभी सलाह नहीं दी।जब भगवान् कृष्ण अर्जुन को योग पद्धति बताते हैं तो अर्जुन कहता है कि इस पद्धति का अभ्यास कर सकना उसके लिए सम्भव नहीं।

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Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 13)

अर्जुन उवाच

योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन ।

एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात् स्थिति स्थिराम् ॥


“अर्जुन ने कहाः हे मधुसूदन ! आपने जिस योग पद्धति का संक्षेप में वर्णन किया है, वह मेरे लिए अव्यावहारिक तथा असह्य प्रतीत होती है, क्योंकि मन अस्थिर तथा चंचल है।” भगवद्गीता (६.३३)।

लेकिन भगवान् कहते हैं:

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 13)

योगिनामपि सर्वेषां मद्गतेनान्तरात्मना ।

श्रद्धावान् भजते यो मां स मे युक्ततमो मतः ॥


“सम्पूर्ण योगियों में जो श्रद्धावान् योगी भक्तियोग के द्वारा मेरी आज्ञा का पालन करता है, अपने अन्तर में मेरे बारे में सोचता है, और मेरी दिव्य प्रेमभक्तिमय सेवा करता है, वह योग में मुझसे परम घनिष्ठतापूर्वक युक्त होता है और सब में श्रेष्ठ है। यही मेरा मत है।” (भगवद्‌गीता ६.४७) अतएव जो सदैव परमेश्वर का चिन्तन करता है, वह एक ही समय में सबसे बड़ा योगी, सर्वोच्च ज्ञानी तथा महानतम भक्त है।

अर्जुन से भगवान् आगे भी कहते हैं कि क्षत्रिय होने के कारण वह युद्ध का त्याग नहीं कर सकता, किन्तु यदि वह कृष्ण का स्मरण करते हुए युद्ध करता है तो वह मृत्यु के समय कृष्ण का स्मरण कर सकेगा। परन्तु इसके लिए मनुष्य को भगवान् की दिव्य प्रेमभक्तिमय सेवा में पूर्णतया समर्पित होना होगा।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 13)

वास्तव में हम अपने शरीर से नहीं, अपितु अपने मन तथा बुद्धि से कर्म करते हैं। अतएव यदि मन तथा बुद्धि सदैव परमेश्वर के विचार में मग्न रहें तो स्वाभाविक है कि इन्द्रियाँ भी उनकी सेवा में लगी रहेंगी। इन्द्रियों के कार्य कम से कम बाहर से तो वे ही रहते हैं, लेकिन चेतना बदल जाती है।

भगवद्‌गीता हमें सिखाती है कि किस प्रकार मन तथा बुद्धि को भगवान् के विचार में लीन रखा जाय। ऐसी तल्लीनता से मनुष्य भगवद्धाम को जाता है। यदि मन कृष्ण की सेवा में लग जाता है तो सारी इन्द्रियाँ स्वतः उनकी सेवा में लग जाती हैं। यह कला है और यही भगवद्‌गीता का रहस्य भी है कि श्रीकृष्ण के विचार में पूरी तरह मग्न रहा जाय।

आधुनिक मनुष्य ने चन्द्रमा तक पहुँचने के लिए कठोर संघर्ष किया है, लेकिन उसने अपने आध्यात्मिक उत्थान के लिए कठिन प्रयास नहीं किया। यदि मनुष्य को पचास वर्ष आगे जीना है, तो उसे चाहिए कि उस थोड़े समय को भगवान् का स्मरण करने के अभ्यास में लगाए। यह अभ्यास भक्तियोग है (श्रीमद्भागवतम् ७.५.२३):

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 13)

श्रवणं कीर्तनं विष्णोः स्मरणं पादसेवनम् ।

अर्चनं वन्दनं दास्यं सख्यमात्मनिवेदनम् ॥

ये नौ विधियाँ हैं, जिनमें से श्रवण सबसे सुगम है, भगवद्‌गीता का किसी स्वरूपसिद्ध व्यक्ति से श्रवण उस व्यक्ति को भगवान् के चिन्तन की ओर मोड़ देगा। इससे परमेश्वर का स्मरण होगा और शरीर छोड़ने पर आध्यात्मिक शरीर प्राप्त होगा, जो परमेश्वर की संगति के लिए उपयुक्त है।

भगवान् आगे भी कहते हैं:

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 13)

अभ्यासयोगयुक्तेन चेतसा नान्यगामिना ।

परमं पुरुषं दिव्यं याति पार्थानुचिन्तयन् ॥


“हे अर्जुन ! जो व्यक्ति पथ पर विचलित हुए बिना अपने मन को निरन्तर मेरा स्मरण करने में व्यस्त रखता है और भगवान् के रूप में मेरा ध्यान करता है, वह मुझको अवश्य प्राप्त होता है।” (भगवदगीता ८.८)

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Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 13)

यह कोई कठिन पद्धति नहीं है, लेकिन इसे किसी अनुभवी व्यक्ति से सीखना चाहिए त‌द्विज्ञानार्थं स गुरुमेवाभिगच्छेत्- मनुष्य को चाहिए कि जो पहले से अभ्यास कर रहा हो, उसके पास जाये। मन सदैव इधर-उधर भटकता रहता है, किन्तु मनुष्य को चाहिए कि मन को भगवान् श्रीकृष्ण के स्वरूप पर या उनके नामोच्चारण पर केन्द्रित करने का अभ्यास करे।

मन स्वभावतः चंचल है, इधर-उधर जाता रहता है, लेकिन यह कृष्ण की ध्वनि पर स्थिर हो सकता है। इस प्रकार मनुष्य को परमं पुरुषम् अर्थात् दिव्यलोक में भगवान् का चिन्तन करना चाहिए और उनको प्राप्त करना चाहिए। चरम अनुभूति या चरम उपलब्धि के साधन भगवद्गीता में बताये गये हैं, और इस ज्ञान के द्वार सबके लिए खुले हैं।

किसी के लिए रोक-टोक नहीं है। सभी श्रेणी के लोग भगवान् कृष्ण का चिन्तन करके उनके पास पहुँच सकते हैं, क्योंकि उनका श्रवण तथा चिन्तन हर एक के लिए सम्भव है। TO BE CONTINUE….

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