भगवान् आगे भी कहते हैं (भगवद्गीता ९.३२-३३): भूमिका 14
मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः ।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम् ॥
किं पुनर्ब्रह्मणाः पुण्या भक्ता राजर्षयस्तथा ।
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ॥
Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 14)
इस तरह भगवान् कहते हैं कि वैश्य, पतिता स्त्री या श्रमिक अथवा अधमयोनि को प्राप्त मनुष्य भी परम को पा सकता है। उसे अत्यधिक विकसित बुद्धि की आवश्यकता नहीं पड़ती। बात यह है कि जो कोई भक्तियोग के सिद्धान्त को स्वीकार करता है और परमेश्वर को जीवन के आश्रय तत्त्व, सर्वोच्च लक्ष्य या चरम लक्ष्य के रूप में स्वीकार करता है वह आध्यात्मिक आकाश में भगवान् तक पहुँचा सकता है। यदि कोई भगवद्गीता में बताये गये सिद्धान्तों को ग्रहण करता है, तो वह अपना जीवन पूर्ण बना सकता है और जीवन की सारी समस्याओं का स्थायी हल पाता है। यही पूरी भगवद्गीता का सार है।
सारांश यह है कि भगवद्गीता दिव्य साहित्य है, जिसको ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। गीता शास्त्रमिदं पुण्यं यः पठेत् प्रयतः पुमान्- यदि कोई भगवद्गीता के उपदेशों का पालन करे तो वह जीवन के दुःखों तथा चिन्ताओं से मुक्त हो सकता है। भय शोकादिवर्जितः। वह इस जीवन में सारे भय से मुक्त हो जाएगा और उसका अगला जीवन आध्यात्मिक होगा (गीता माहात्म्य १)।
एक अन्य लाभ भी होता है:
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Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 14)
गीताध्ययनशीलस्य प्राणायामपरस्य च ।
नैव सन्ति हि पापानि पूर्वजन्मकृतानि च ॥
“यदि कोई भगवद्गीता को निष्ठा तथा गम्भीरता के साथ पढ़ता है तो भगवान् की कृपा से उसके सारे पूर्व दुष्कर्मों के फलों का उस पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता” (गीता माहात्म्य २)। भगवान् भगवद्गीता (१८.६६) के अन्तिम अंश में जोर देकर कहते हैं:
सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज ।
अहं त्वां सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
“सब धर्मों को त्याग कर एकमात्र मेरी ही शरण में आओ। मैं तुम्हें समस्त पापों से मुक्त कर दूँगा। तुम डरो मत।” इस प्रकार अपनी शरण में आये भक्त का पूरा उत्तरदायित्व भगवान् अपने ऊपर ले लेते हैं और उसके समस्त पापों को क्षमा कर देते हैं।
Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 14)
मलिनेमोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने ।
सकृद्गीतामृतस्नानं संसारमलनाशनम् ॥
“मनुष्य जल में स्नान करके नित्य अपने को स्वच्छ कर सकता है, लेकिन यदि कोई भगवद्गीता-रूपी पवित्र गंगा-जल में एक बार भी स्नान कर ले तो वह भौतिक जीवन (भवसागर) की मलिनता से सदा-सदा के लिए मुक्त हो जाता है।” (गीता माहात्म्य ३)।
गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्रविस्तरैः ।
या स्वयं पद्मनाभस्य मुखपद्माद्विनिःसृता ॥
चूँकि भगवद्गीता भगवान् के मुख से निकली है, अतएव किसी अन्य वैदिक साहित्य को पढ़ने की आवश्यकता नहीं रहती। उसे केवल भगवद्गीता का ही ध्यानपूर्वक तथा मनोयोग से श्रवण तथा पठन करना चाहिए। वर्तमान युग में लोग सांसारिक कार्यों में इतने व्यस्त हैं कि उनके लिए समस्त वैदिक साहित्य का अध्ययन कर पाना सम्भव नहीं है। परन्तु इसकी आवश्यकता भी नहीं है। केवल एक पुस्तक, भगवद्गीता, ही पर्याप्त है क्योंकि यह समस्त वैदिक ग्रंथों का सार है और इसका प्रवचन भगवान् ने किया है (गीता माहात्म्य ४)।
जैसा कि कहा गया है:
Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 14)
भारतामृतसर्वस्वं विष्णुवक्त्राद्विनिःसृतम् ।
गीता-गङ्गोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ॥
“जो गंगाजल पीता है, वह मुक्ति प्राप्त करता है। अतएव उसके लिए क्या कहा जाय जो भगवद्गीता का अमृत पान करता हो ? भगवद्गीता महाभारत का अमृत है और इसे भगवान् कृष्ण (मूल विष्णु) ने स्वयं सुनाया है।” (गीता माहात्म्य ५) । भगवद्गीता भगवान् के मुख से निकली है और गंगा भगवान् के चरणकमलों से निकली है। निस्सन्देह भगवान् के मुख तथा चरणों में कोई अन्तर नहीं है, लेकिन निष्पक्ष अध्ययन से हम पाएँगे कि भगवद्गीता गंगा-जल की अपेक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है।
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनन्दनः ।
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृतं महत् ॥
“यह गीतोपनिषद्, भगवद्गीता, जो समस्त उपनिषदों का सार है, गाय के तुल्य है और ग्वालबाल के रूप में विख्यात भगवान् कृष्ण इस गाय को दुह रहे हैं। अर्जुन बछड़े के समान है, और सारे विद्वान तथा शुद्ध भक्त भगवद्गीता के अमृतमय दूध का पान करने वाले हैं।” (गीता माहात्म्य ६)
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Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 14)
एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम् ।
एको देवो देवकीपुत्र एव ।
एको मन्त्रस्तस्य नामानि यानि ।
कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा ॥
आज के युग में लोग एक शास्त्र, एक ईश्वर, एक धर्म तथा एक वृत्ति के लिए अत्यन्त उत्सुक हैं। अतएव एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीतम्-केवल एक शास्त्र भगवद्गीता हो, जो सारे विश्व के लिए हो। एको देवो देवकीपुत्र एक सारे विश्व के लिए एक ईश्वर हो- श्रीकृष्ण। एको मन्त्रस्तस्य नामानि यानि-और एक मन्त्र, एक प्रार्थना हो-उनके नाम का कीर्तन, हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे। हरे राम, हरे राम, राम राम, हरे हरे। कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा-केवल एक ही कार्य हो- भगवान् की सेवा। (गीता माहात्म्य ७). TO BE CONTINUE….