भूमिका 2

"Join our WhatsApp group and subscribe to our YouTube channel for the latest updates!"

गवद्‌गीता के चतुर्थ अध्याय में (४.१-३) भगवान् कहते हैं: भूमिका 2

इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम् ।

विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत् ॥

एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदुः ।

स कालेनेह महता योगो नष्टः परन्तप ॥

स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः ।

भक्तोऽसि में सखा चेति रहस्यं होतदुत्तमम् ॥

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 2)

यहाँ पर भगवान् अर्जुन को सूचित करते हैं कि भगवद्‌गीता की यह योगपद्धति सर्वप्रथम सूर्यदेव को बताई गयी, सूर्यदेव ने इसे मनु को बताया और मनु ने इसे इक्ष्वाकु को बताया। इस प्रकार गुरु-परम्परा द्वारा यह योगपद्धति एक वक्ता से दूसरे वक्ता तक पहुँचती रही। लेकिन कालान्तर में यह छिन्न-भिन्न हो गई, फलस्वरूप भगवान् को इसे फिर से बताना पड़ रहा है- इस बार अर्जुन को कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 2)

वे अर्जुन से कहते हैं कि मैं तुम्हें यह परम रहस्य इसलिए प्रदान कर रहा हूँ, क्योंकि तुम मेरे भक्त तथा मित्र हो। इसका तात्पर्य यह है कि भगवद्‌गीता ऐसा ग्रन्थ है, जो विशेष रूप से भगवद्भक्त के लिए है, भगवद्भक्त के निमित्त है। अध्यात्मवादियों की तीन श्रेणियाँ हैं- ज्ञानी, योगी तथा भक्त या कि निर्विशेषवादी, ध्यानी और भक्त। यहाँ पर भगवान् अर्जुन से स्पष्ट कहते हैं कि वे उसे इस नवीन परम्परा (गुरु-परम्परा) का प्रथम पात्र बना रहे हैं, क्योंकि प्राचीन परम्परा खण्डित हो गई थी। अतएव यह भगवान् की इच्छा थी कि सूर्यदेव से चली आ रही विचारधारा की दिशा में ही अन्य परम्परा स्थापित की जाय और उनकी यह इच्छा थी कि उनकी शिक्षा का वितरण अर्जुन द्वारा नये सिरे से हो।

Listen to this BLOG in AUDIO FORMAT by clicking here, and don’t forget to SUBSCRIBE to our channel for more exciting content!

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 2)

वे चाहते थे कि अर्जुन भगवद्‌गीता ज्ञान का प्रामाणिक विद्वान बने। अतएव हम देखते हैं कि भगवद्‌गीता का उपदेश अर्जुन को विशेष रूप से दिया गया, क्योंकि अर्जुन भगवान् का भक्त, प्रत्यक्ष शिष्य तथा घनिष्ठ मित्र था। अतएव जिस व्यक्ति में अर्जुन जैसे गुण पाये जाते हैं, वह भगवद्‌गीता को सबसे अच्छी तरह समझ सकता है। कहने का तात्पर्य यह है कि भक्त को भगवान् से प्रत्यक्ष रुप से सम्बन्धित होना चाहिए। ज्योंही कोई भगवान् का भक्त बन जाता है, त्योंही उसका सीधा सम्बन्ध भगवान् से हो जाता है। यह एक अत्यन्त विशद् विषय है, लेकिन संक्षेप में यह बताया जा सकता है कि भक्त तथा भगवान् के मध्य पाँच प्रकार का सम्बन्ध हो सकता है

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 2)

१. कोई निष्क्रिय अवस्था में भक्त हो सकता है;

२. कोई सक्रिय अवस्था में भक्त हो सकता है;

३. कोई सखा-रूप में भक्त हो सकता है;

४. कोई माता या पिता के रूप में भक्त हो सकता है;

५. कोई दम्पतिं प्रेमी के रूप में भक्त हो सकता है।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 2)

अर्जुन का कृष्ण से सम्बन्ध सखा-रूप में था। निस्सन्देह इस मित्रता (सख्य- भाव) तथा भौतिक जगत में पायी जाने वाली मित्रता में आकाश पाताल का अन्तर है। यह दिव्य मित्रता है, जो हर किसी को प्राप्त नहीं हो सकती। निस्सन्देह प्रत्येक व्यक्ति का भगवान् से सीधा सम्बन्ध होता है और यह सम्बन्ध भक्ति की पूर्णता से ही जागृत होता है। किन्तु जीवन की वर्तमान अवस्था में हमने न केवल भगवान को भुला दिया है, अपितु हम भगवान् के साथ अपने शाश्वत सम्बन्ध को भी भूल चुके हैं। लाखों-करोड़ों जीवों में से प्रत्येक जीव का भगवान् के साथ नित्य विशिष्ट सम्बन्ध है। यह स्वरूप कहलाता है। भक्तियोग की प्रक्रिया द्वारा यह स्वरूप जागृत किया जा सकता है। तब यह अवस्था स्वरूप-सिद्धि कहलाती है- यह स्वरूप की अर्थात् स्वाभाविक या मूलभूत स्थिति की पूर्णता कहलाती है। अतएव अर्जुन भक्त था और वह भगवान् के सम्पर्क में मित्र रूप में था।

हमें इस बात पर विशेष ध्यान देना चाहिए कि अर्जुन ने भगवद्‌गीता को किस तरह ग्रहण किया।

इसका वर्णन दशम अध्याय में (१०.१२-१४) इस प्रकार हुआ है:

अर्जुन उवाच

परं ब्रह्म परं धाम पवित्रं परमं भवान् ।

पुरुषं शाश्वतं दिव्यमादिदेवमजं विभुम् ॥

आहुस्त्वामृषयः सर्वे देवर्षिर्नारदस्तथा ।

असितो देवलो व्यासः स्वयं चैव ब्रवीषि मे ॥

सर्वमेतदूतं मन्ये यन्मां वदसि केशव।

न हि ते भगवन्व्यक्ति विदुर्देवा न दानवाः ॥


“अर्जुन ने कहाः आप भगवान्, परम-धाम, पवित्रतम, परम सत्य हैं। आप शाश्वत, दिव्य आदि पुरुष, अजन्मा तथा महानतम हैं। नारद, असित, देवल तथा व्यास जैसे समस्त महामुनि आपके विषय में इस सत्य की पुष्टि करते हैं और अब आप स्वयं मुझसे इसी की घोषणा कर रहे हैं। हे कृष्ण। आपने जो कुछ कहा है, उसे पूर्णरूप से मैं सत्य मानता हूँ। हे प्रभु! न तो देवता और न असुर ही आपके व्यक्तित्व को समझ सकते हैं।”

Listen to this BLOG in AUDIO FORMAT by clicking here, and don’t forget to SUBSCRIBE to our channel for more exciting content!

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 2)

भगवान् से भगवद्‌गीता सुनने के बाद अर्जुन ने कृष्ण को परम् ब्रह्म स्वीकार कर लिया। प्रत्येक जीव ब्रह्म है, लेकिन परम पुरुषोत्तम भगवान् परम ब्रह्म हैं। परम् धाम का अर्थ है कि वे सबों के परम आश्रय या धाम हैं। पवित्रम् का अर्थ है कि वे शुद्ध हैं, भौतिक कल्मष से मुक्त हैं। पुरुषम् का अर्थ है कि वे परम भोक्ता हैं; शाश्वतम् अर्थात् आदि, सनातन; दिव्यम् अर्थात् दिव्य; आदि देवम्- भगवान्; अजम्-अजन्मा तथा विभुम् अर्थात् महानतम हैं।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 2)

कोई यह सोच सकता है कि चूँकि कृष्ण अर्जुन के मित्र थे, अतएव अर्जुन यह सब चाटुकारिता के रूप में कह रहा था। लेकिन अर्जुन भगवद्‌गीता के पाठकों के मन से इस प्रकार के सन्देह को दूर करने के लिए अगले श्लोक में इस प्रशंसा की पुष्टि करता है, जब वह यह कहता है कि कृष्ण को मैं ही भगवान नहीं मानता, अपितु नारद, असित, देवल तथा व्यासदेव जैसे महापुरुष भी भगवान् स्वीकार करते हैं।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 2)

ये सब महापुरुष हैं, जो समस्त आचार्यों द्वारा स्वीकृत वैदिक ज्ञान का वितरण (प्रचार) करते हैं। अतएव अर्जुन श्रीकृष्ण से कहता है कि वे जो कुछ भी कहते हैं, उसे वह पूर्ण सत्य मानता है। सर्वमेतदृतं मन्ये” आप जो कुछ कहते हैं, उसे मैं सत्य मानता हूँ।” अर्जुन यह भी कहता है कि भगवान् के व्यक्तित्व को समझ पाना बहुत कठिन है, यहाँ तक कि बड़े-बड़े देवता भी उन्हें नहीं समझ पाते। अतएव मानव मात्र भक्त बने बिना भगवान् श्रीकृष्ण को कैसे समझ सकता है?

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 2)

अतएव भगवद्‌गीता को भक्तिभाव से ग्रहण करना चाहिए। किसी को यह नहीं सोचना चाहिए कि वह कृष्ण के तुल्य है, न ही यह सोचना चाहिए कि कृष्ण सामान्य पुरुष हैं या कि एक महान व्यक्तित्व हैं। भगवान् श्रीकृष्ण साक्षात् पुरुषोत्तम भगवान् हैं। अतएव भगवद्‌गीता के कथनानुसार या भगवद्गीता को समझने का प्रयत्न करने वाले अर्जुन के कथनानुसार हमें सिद्धान्त रूप में कम से कम इतना तो स्वीकार कर लेना चाहिए कि श्रीकृष्ण भगवान् हैं, और उसी विनीत भाव से हम भगवद्गीता को समझ सकते हैं। जब तक कोई भगवद्‌गीता का पाठ विनम्र भाव से नहीं करता है, तब तक उसे समझ पाना अत्यन्त कठिन है, क्योंकि यह एक महान रहस्य है। TO BE CONTINUE….

VISIT OUR WEBSITE

"Share this post with your family and friends for more exciting knowledge."

Facebook
Twitter
LinkedIn
WhatsApp