भूमिका 3

"Join our WhatsApp group and subscribe to our YouTube channel for the latest updates!"

तो भगवद्‌गीता क्या है? भगवद्‌गीता का प्रयोजन मनुष्य को भौतिक संसार के अज्ञान से उबारना है। प्रत्येक व्यक्ति अनेक प्रकार की कठिनाइयों में फैसा रहता है, जिस प्रकार अर्जुन भी कुरुक्षेत्र में युद्ध करने के लिए कठिनाई में था। अर्जुन ने श्रीकृष्ण की शरण ग्रहण कर ली, फलस्वरूप इस भगवद्‌गीता का प्रवचन हुआ। भूमिका 3

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 3)

केवल अर्जुन वरन हममें से प्रत्येक व्यक्ति इस भौतिक अस्तित्व के कारण चिन्ताओं से पूर्ण है। हमारा अस्तित्व ही अनस्तित्व के परिवेश में है। वस्तुतः हमें अनस्तित्व से भयभीत नहीं होना चाहिए। हमारा अस्तित्व सनातन है। लेकिन हम किसी न किसी कारण से असत् में डाल दिए गये हैं। असत् का अर्थ उससे है जिसका अस्तित्व नहीं है।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 3)

कष्ट भोगने वाले अनेक मनुष्यों में केवल कुछ ही ऐसे हैं, जो वास्तव में यह जानने के जिज्ञासु हैं, कि वे क्या हैं, वे इस विषम स्थिति में क्यों डाल दिये गये हैं, आदि-आदि। जब तक मनुष्य को अपने कष्टों के विषय में जिज्ञासा नहीं होती, जब तक उसे यह अनुभूति नहीं होती कि वह कष्ट भोगना नहीं अपितु सारे कष्टों का हल ढूँढना चाहता है, तब तक उसे सिद्ध मानव नहीं समझना चाहिए। मानवता तभी शुरू होती है, जब मन में इस प्रकार की जिज्ञासा उदित होती है।

Listen to this BLOG in AUDIO FORMAT by clicking here, and don’t forget to SUBSCRIBE to our channel for more exciting content!

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 3)

ब्रह्म-सूत्र में इस जिज्ञासा को ब्रह्म जिज्ञासा कहा गया है। अथातो ब्रह्म जिज्ञासा। मनुष्य के सारे कार्यकलाप असफल माने जाने चाहिए, यदि वह परब्रह्म के स्वभाव के विषय में जिज्ञासा न करे। अतएव जो लोग यह प्रश्न करना प्रारम्भ कर देते हैं कि वे क्यों कष्ट उठा रहे हैं, या वे कहाँ से आये हैं और मृत्यु के बाद कहाँ जायेंगे, वे ही भगवद्‌गीता को समझने के सुपात्र विद्यार्थी हैं। निष्ठावान विद्यार्थी में भगवान के प्रति आदर भाव भी होना चाहिए। अर्जुन ऐसा ही विद्यार्थी था।

जब मनुष्य जीवन के वास्तविक प्रयोजन को भूल जाता है तो भगवान् कृष्ण विशेष रूप से उसी उद्देश्य की पुनर्स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। तब भी असंख्य जागृत हुए लोगों में से कोई एक होता है, जो वास्तव में अपनी स्थिति को जान पाता है और यह भगवद्‌गीता उसी के लिए कही गई है। वस्तुतः हम सभी अविद्या रूपी बाघिन के द्वारा निगल लिए गए हैं, लेकिन भगवान् जीवों पर, विशेषतया मनुष्यों पर, कृपालु हैं। इसी उद्देश्य से उन्होंने अपने मित्र अर्जुन को अपना शिष्य बना कर भगवद्गीता का प्रवचन किया।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 3)

भगवान् कृष्ण का पार्षद होने के कारण अर्जुन समस्त अज्ञान (अविद्या) से मुक्त था, लेकिन कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल में उसे अज्ञान में डाल दिया गया ताकि वह भगवान् कृष्ण से जीवन की समस्याओं के विषय में प्रश्न करे, जिससे भगवान् उनकी व्याख्या भावी पीढियों के मनुष्यों के लाभ के लिए कर दें और जीवन की योजना का निर्धारण कर दें। तब मनुष्य तदनुसार कार्य कर पायेगा और मानव जीवन के उद्देश्य को पूर्ण कर सकेगा।

भगवद्‌गीता की विषयवस्तु में पाँच मूल सत्यों का ज्ञान निहित है। सर्वप्रथम ईश्वर के विज्ञान की और फिर जीवों की स्वरूप स्थिति की विवेचना की गई है। ईश्वर का अर्थ नियन्ता है और जीवों का अर्थ है-नियन्त्रित। यदि जीव यह कहे कि वह नियन्त्रित नहीं अपितु स्वतन्त्र है तो वह पागल है। जीव सभी प्रकार से, कम से कम बद्ध जीवन में तो, नियन्त्रित है। अतएव भगवद्‌गीता की विषयवस्तु ईश्वर, सर्वोच्च नियंता तथा जीव नियंत्रित जीवात्माएँ, से सम्बन्धित है।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 3)

इसमें प्रकृति (भौतिक प्रकृति), काल (समस्त ब्रह्माण्ड की कालावधि या प्रकृति का प्राकट्य) तथा कर्म (कार्यकलाप) की भी व्याख्या है। यह दृश्य-जगत विभिन्न कार्यकलापों से ओतप्रोत है। सारे जीव भिन्न-भिन्न कार्यों में लगे हुए हैं। भगवद्‌गीता से हमें अवश्य सीखना चाहिए कि ईश्वर क्या है, जीव क्या है, प्रकृति क्या है, दृश्य-जगत क्या है, यह काल द्वारा किस प्रकार नियन्त्रित किया जाता है और जीवों के कार्यकलाप क्या हैं?

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 3)

भगवद्गीता के इन पाँच मूलभूत विषयों में से इसकी स्थापना की गई है कि भगवान्, अथवा कृष्ण अथवा ब्रह्म, या परमात्मा- अथवा परम नियंता, आप जो चाहें कह लें- सबसे श्रेष्ठ है। जीव गुण में परम-नियन्ता के ही समान हैं। उदाहरणार्थ, जैसा कि भगवद्‌गीता के विभिन्न अध्यायों में बताया जायेगा, भगवान् भौतिक प्रकृति के समस्त कार्यों के ऊपर नियन्त्रण रखते हैं। भौतिक प्रकृति स्वतन्त्र नहीं है। वह परमेश्वर के निर्देशन में कार्य करती है। जैसा कि भगवान् कृष्ण कहते हैं- मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम- भौतिक प्रकृति मेरे निर्देशन में कार्य करती है।

Listen to this BLOG in AUDIO FORMAT by clicking here, and don’t forget to SUBSCRIBE to our channel for more exciting content!

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 3)

जब हम दृश्य-जगत् में आश्चर्यजनक घटनाएँ घटते देखते हैं, तो हमें यह जानना चाहिए कि इस दृश्य जगत् के पीछे एक नियन्ता है। बिना नियन्त्रण के किसी का प्रकट होना सम्भव नहीं। नियन्ता को न मानना बचपना है। उदाहरणार्थ, एक बालक सोच सकता है कि स्वतोचालित यान विचित्र होता है, क्योंकि यह बिना घोड़े के या खींचने वाले पशु से चलता है।

किन्तु अभिज्ञ व्यक्ति स्वतोचालित यान की आभियान्त्रिक व्यवस्था से परिचित होता है। वह सदैव जानता है कि इस यन्त्र के पीछे एक व्यक्ति, एक चालक होता है। इसी प्रकार परमेश्वर वह चालक है, जिसके निर्देशन में सब कार्य हो रहा है।

भगवान् ने जीवों को अपने अंश-रूप में स्वीकार किया है, जैसा कि हम अगले अध्यायों में देखेंगे। सोने का एक कण भी सोना है, समुद्र के जल की बूँद भी खारी होती है। इसी प्रकार हम जीव भी परम-नियन्ता ईश्वर या भगवान् श्रीकृष्ण के अंश होने के कारण सूक्ष्म मात्रा में परमेश्वर के सभी गुणों से युक्त होते हैं, क्योंकि हम सूक्ष्म ईश्वर या अधीनस्थ ईश्वर हैं।

हम प्रकृति पर नियन्त्रण करने का प्रयास कर रहे हैं, जैसे कि वर्तमान में हम अन्तरिक्ष या ग्रहों को वश में करना चाहते हैं और हममें नियन्त्रण रखने की यह प्रवृत्ति इसलिए है क्योंकि यह कृष्ण में भी है। यद्यपि हममें भौतिक प्रकृति पर प्रभुत्व जमाने की प्रवृत्ति होती है, लेकिन हमें यह जानना चाहिए कि हम परम-नियन्ता नहीं हैं। इसकी व्याख्या भगवद्गीता में की गई है। TO BE CONTINUE….

VISIT OUR WEBSITE

"Share this post with your family and friends for more exciting knowledge."

Facebook
Twitter
LinkedIn
WhatsApp