भूमिका 9

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वस्तुतः भगवान् के साथ हमारा सम्बन्ध सेवा का सम्बन्ध है। परमेश्वर परम भोक्ता हैं और हम सारे जीव उनके सेवक हैं। हम सब उनके भोग (सुख) के लिए उत्पन्न किये गये हैं और यदि हम भगवान् के साथ उस नित्य भोग में भाग लेते हैं, तो हम सुखी बनते हैं। भूमिका 9

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 9)

हम किसी अन्य प्रकार से सुखी नहीं हो सकते। स्वतन्त्र रूप से सुखी बन पाना सम्भव नहीं है, जिस प्रकार शरीर का कोई भी भाग उदर से सहयोग किये बिना सुखी नहीं रह सकता। परमेश्वर की दिव्य प्रेममय सेवा किये बिना जीव सुखी नहीं हो सकता।

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Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 9)

भगवद्‌गीता में विभिन्न देवों की पूजा या सेवा करने का अनुमोदन नहीं किया गया है। उसमें (७.२०) कहा गया है:

कामैस्तैस्तैर्हतज्ञानाः प्रपद्यन्तेऽन्यदेवताः ।

तं तं नियममास्थाय प्रकृत्या नियताः स्वया ॥


“जिनकी बुद्धि भौतिक इच्छाओं द्वारा चुरा ली गई है, वे देवताओं की शरण में जाते हैं और वे अपने-अपने स्वभावों के अनुसार पूजा के विशेष विधिविधानों का पालन करते हैं।” यहाँ यह स्पष्ट कहा गया है कि जो वासना द्वारा निर्देशित होते हैं, वे भगवान् कृष्ण की पूजा न करके देवताओं की पूजा करते हैं।

जब हम कृष्ण का नाम लेते हैं तो हम किसी साम्प्रदायिक नाम का उल्लेख नहीं करते। कृष्ण का अर्थ है सर्वोच्च आनन्द और इसकी पुष्टि हुई है कि परमेश्वर समस्त आनन्द के आगार हैं। हम सभी आनन्द की खोज में लगे रहते हैं। आनन्दमयोऽभ्यासात् (वेदान्त-सूत्र १.१.१२)। भगवान् की ही भाँति जीव चेतना से पूर्ण हैं और सुख की खोज में रहते हैं। भगवान् तो हमेशा सुखी हैं और यदि जीव उनकी संगति करते हैं उनके साथ सहयोग करते हैं, तो वे भी सुखी बन जाते हैं।

Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 9)

भगवान् इस मर्त्य लोक में सुख से पूर्ण अपनी वृन्दावन लीलाएँ प्रदर्शित करने के लिए अवतरित होते हैं। अपने गोपमित्रों के साथ, अपनी गोपिका-सखियों के साथ, वृन्दावन के अन्य निवासियों के साथ तथा गायों के साथ उनकी लीलाएँ सुख से ओतप्रोत थीं। वृन्दावन की सारी जनता कृष्ण के अतिरिक्त अन्य किसी को नहीं जानती थी।

परन्तु भगवान् कृष्ण ने अपने पिता नन्द महाराज को भी इन्द्रदेव की पूजा करने से निरुत्साहित किया क्योंकि वे इस तथ्य को प्रतिष्ठित करना चाहते थे कि लोगों को किसी भी देवता की पूजा करने की आवश्यकता नहीं है। उन्हें एकमात्र परमेश्वर की पूजा करनी चाहिए क्योंकि उनका चरम लक्ष्य उनके (भगवान् के) धाम को वापस जाना है।

भगवद्‌गीता में (१५.६) भगवान् श्रीकृष्ण के धाम का वर्णन इस प्रकार हुआ है :

न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः ।

यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्वाम परमं मम ॥


“मेरा परम धाम न तो सूर्य या चन्द्रमा द्वारा, न ही अग्नि या बिजली द्वारा प्रकाशित होता है। जो लोग वहाँ पहुँच जाते हैं, वे इस भौतिक जगत में फिर कभी नहीं लौटते।”

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Bhagavad Gita In HINDI श्रीमद्भगवद्गीता यथारूप (भूमिका 9)

यह श्लोक उस शाश्वत आकाश (परम धाम) का वर्णन प्रस्तुत करता है। निस्सन्देह हमें आकाश की भौतिक कल्पना है और हम इसे सूर्य, चन्द्र, तारे आदि के सम्बन्ध में सोचते हैं। किन्तु इस श्लोक में भगवान् बताते हैं कि शाश्वत आकाश में सूर्य, चन्द्र, अग्नि या बिजली किसी की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह परमेश्वर से निकलने वाली ब्रह्मज्योति द्वारा प्रकाशित है।

हम अन्य लोकों तक पहुँचने का कठिन प्रयास कर रहे हैं, लेकिन परमेश्वर के धाम को जानना कठिन नहीं है। यह धाम गोलोक कहा जाता है। ब्रह्मसंहिता में (५.३७) इसका अतीव सुन्दर वर्णन मिलता है- गोलोक एव निवसत्यखिलात्मभूतः। भगवान् अपने धाम गोलोक में नित्य वास करते हैं फिर भी इस संसार से उन तक पहुँचा जा सकता है और ऐसा करने के लिए वे अपने सच्चिदानन्द विग्रह रूप को व्यक्त करते हैं, जो उनका असली रूप है।

जब वे इस रूप को प्रकट करते हैं, तब हमें इसकी कल्पना करने की आवश्यकता नहीं रह जाती कि उनका रूप कैसा है। ऐसे काल्पनिक चिन्तन को निरुत्साहित करने के लिए ही वे अवतार लेते हैं, और अपने श्यामसुन्दर स्वरूप को प्रदर्शित करते हैं। दुर्भाग्यवश अल्पज्ञ लोग उनकी हँसी उड़ाते हैं क्योंकि वे हमारे जैसे बन कर आते हैं और हमारे साथ मनुष्य रूप में खेलते कूदते हैं।

लेकिन इस कारण हमें यह नहीं सोचना चाहिए कि वे हमारी तरह हैं। वे अपनी सर्वशक्तिमत्ता के कारण ही अपने वास्तविक रूप में हमारे समक्ष प्रकट होते हैं, और अपनी लीलाओं का प्रदर्शन करते हैं, जो उनके धाम में होने वाली लीलाओं की अनुकृतियाँ (प्रतिरूप) होती हैं। TO BE CONTINUE….

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